एक विधवा औरत (इंजील : लुक़ास 18:1-8)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

एक विधवा औरत

इंजील : लुक़ास 18:1-8

ईसा(अ.स) ने लोगों को एक वाक़या सुनाया, ताकि लोग हमेशा इबादत करें और कभी मायूस ना हों।(1)

ईसा(अ.स) ने कहा, “एक क़स्बे में एक क़ाज़ी था जो ना ही अल्लाह ताअला से डरता था और ना ही इंसानों से।(2) उसी क़स्बे में एक विधवा औरत रहती थी जो उस क़ाज़ी के पास फ़ैसले के लिए जाया करती थी। वो औरत उस क़ाज़ी से कहती थी, ‘ए क़ाज़ी, मेरे और मेरे दुश्मन के बीच सही से फ़ैसला करो!’(3)

“लेकिन क़ाज़ी उस औरत की मदद नहीं करना चाहता था। बहुत वक़्त गुज़रने के बाद उस क़ाज़ी ने सोचा, ‘मैं ना ही अल्लाह ताअला से डरता हूँ और ना लोगोंं से,(4) लेकिन इस औरत ने मुझे बहुत परेशान कर दिया है। मैं इसको जल्दी से इंसाफ़ दिलाता हूँ वरना ये ऐसे मेरे जीना मुश्किल कर देगी!’”(5)

ईसा(अ.स) ने उन लोगों से पूछा, “तुमने सुना कि उस शैतान क़ाज़ी ने क्या कहा?(6) क्या अल्लाह ताअला अपने नेक बंदों को इंसाफ़ नहीं देता जो लोग दिन-रात रो-रो कर इंसाफ़ की पुकार लगाते हैं? क्या वो बहुत देर में उनको जवाब देता है?(7) ऐसा नहीं है, मैं तुमको बताता हूँ, अल्लाह रब्बुल करीम अपने बंदों की फ़ौरन मदद करता है! लेकिन जब मैं, अल्लाह ताअला का नुमाइंदा, वापस आऊँगा, तो क्या मुझे ज़मीन पर ईमान वाले लोग मिलेंगे?”(8)