प्यार का अहद (तौरैत : इआदा 7:9-12, 8:1-5, 31:24-29)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

प्यार का अहद

तौरैत : इआदा 7:9-12, 8:1-5, 31:24-29

मूसा(अ.स) ने लोगों से कहा, “याद रखो कि अल्लाह रब्बुल अज़ीम सिर्फ़ एक ही है। वो अपने करे हुए वादे को हमेशा पूरा करता है और अपने किए हुए अहद को हज़ार नस्लों तक याद रखता है। वो ये सब उन लोगों के लिए करता है जो उससे मोहब्बत करते हैं और उसका कहना मानते हैं।(9) लेकिन जो लोग अल्लाह ताअला से नफ़रत करते हैं वो बर्बाद कर दिए जाते हैं क्यूँकि वो उनको सज़ा देने में हिचकिचाता नहीं है।(10) इसलिए ख़्याल रखना कि उसके हुक्म और उसूलों को मानो जो मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ।(11) इन क़ानूनों पर ग़ौर करो और इन पर ध्यान से अमल करो, तभी अल्लाह ताअला अपने अहद को याद रखेगा जो उसने तुम्हारे बाप-दादा से किया है।(12)

8:1-5

[फिर मूसा(अ.स) ने उन से कहा,] “ध्यान से हर हुक्म पर अमल करना जो मैं तुमको बता रहा हूँ, तभी तुम लोग बरकत पाओगे। तुम तभी उस ज़मीन के मालिक बन सकोगे कि जिस का वादा अल्लाह ताअला ने तुम्हारे बुज़ुर्गों से किया है।(1) याद रखना कि अल्लाह ताअला ने किस तरह चालीस साल तुम्हें रेगिस्तान में भटकाया और तुम्हारे ग़ुरूर को ख़त्म कर दिया। उसने तुम्हारा इम्तिहान लिया ताकि वो तुम्हें परख सके। अल्लाह ताअला जानना चाहता था कि तुम उसके हुक्म पर अमल करते हो या नहीं।(2) उसने तुम्हें नर्म करने के लिए तुम्हें भूख का एहसास दिलाया और फिर खाने के लिए मन्न[a] नामक एक आसमानी रोटी दी। मन्न एक ऐसा खाना था जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने ना कभी देखा था और ना ही कभी सुना था। इस तरह से, अल्लाह ताअला ने तुमको सिखाया कि इंसान सिर्फ़ रोटी से नहीं ज़िंदा है बल्कि अल्लाह ताअला के हर कलाम में ज़िन्दगी है।(3)

“इन चालीस सालों में, ना ही तुम्हारे कपड़े फटे और ना ही तुम्हारे पैरों में सूजन आई।(4) तुम अपने दिलों में ये बात बैठा लो कि जिस तरह एक बाप अपनी औलाद की ग़लतियाँ सुधारता है उसी तरह से अल्लाह रब्बुल अज़ीम ने तुम लोगों को भी सुधारा है।”(5)