कभी ना ख़त्म होने वाली ज़िंदगी (इंजील : लुक़ास 18:18-27)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

कभी ना ख़त्म होने वाली ज़िंदगी

इंजील : लुक़ास 18:18-27

एक इब्रानी रहनुमा ने ईसा(अ.स) से पूछा, “मेरे अच्छे उस्ताद, मैं ऐसा क्या करूँ कि मुझे कभी ना ख़त्म होने वाले ज़िंदगी हासिल हो?”(18)

यूसुफ़(अ.स) और उनके भाई (तौरैत : ख़िल्क़त 42:1-3, 6-8, 25, 26; 43:2,19-34; 45:1-11, 25-26a, 28; 46:2-7)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

यूसुफ़(अ.स) और उनके भाई

तौरैत : ख़िल्क़त 42:1-3, 6-8, 25, 26; 43:2,19-34; 45:1-11, 25-26a, 28; 46:2-7

बेहतरीन ज़िंदगी का नुस्ख़ा (ज़बूर 34)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

बेहतरीन ज़िंदगी का नुस्ख़ा

ज़बूर 34

मैं हमेशा अल्लाह ताअला का शुक्रगुज़ार रहूँगा;

मैं कभी भी उसकी हम्द-ओ-सना करना बंद नहीं करूँगा।(1)

 

मैं उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा करता हूँ;

अल्लाह की मदद के लिए शुक्रगुज़ारी (ज़बूर 138)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

अल्लाह की मदद के लिए शुक्रगुज़ारी

ज़बूर 138

या अल्लाह रब्बुल करीम, मैं पूरे दिल से तेरा शुक्रिया अदा करता हूँ;

मैं इन झूटे ख़ुदाओं के सामने तेरी अज़मत के क़सीदे पढूँगा।(1)

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