हिकमत की कहावतें (ज़बूर : कहावतें 3:5-8; 1:7; 29:25; 12:15; 15:32; 18:10; 21:3; 4:23)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

हिकमत की कहावतें

ज़बूर : कहावतें 3:5-8; 1:7; 29:25; 12:15; 15:32; 18:10; 21:3; 4:23

3:5-8

अल्लाह ताअला पर पूरे दिल से यक़ीन करो। कभी भी उस चीज़ पर भरोसा मत करो जिसे तुम सोचते हो कि मैं इसे जानता हूँ।(5) अपने हर काम में अपने परवरदिगार को याद रखो क्यूँकि वो ही तुमको सीधा रास्ता दिखाएगा।(6) कभी भी अपने आपको इतना अक़्लमंद मत समझो कि जितना तुम नहीं हो; बल्कि तुम अल्लाह ताअला का कहना मानो और गुनाहों से बचो।(7) अगर तुम ये करोगे तो वो तुम्हारे लिए एक अच्छी दवा के जैसे होगी, जो तुम्हारे ज़ख़्मों को भर देगी और दर्द को कम करेगी।(8)

1:7

इल्म हासिल करने के लिए तुमको सबसे पहले दिल से अल्लाह ताअला की इज़्ज़त करनी पड़ेगी। बेवक़ूफ़ लोग अक़्लमंदी को अहमियत नहीं देते और इल्म हासिल करने से परहेज़ करते हैं।(7)

29:25

जो इंसान से डरेगा वो [शैतान के] जाल में फंस जाएगा। लेकिन अल्लाह रब्बुल अज़ीम की इज़्ज़त करने वाला हमेशा हिफ़ाज़त से रहेगा।(25)

12:15

बेवक़ूफ़ को अपने काम का तरीक़ा बिलकुल सही लगता है, लेकिन एक अक़्लमंद इंसान हमेशा दूसरों से मशवरा लेता है।(15)

15:32

अगर तुम सीखने से इनकार कर दोगे तो तुम अपना ख़ुद नुक़सान करोगे, लेकिन अगर तुम दूसरों का मशवरा क़ुबूल करोगे तो अक़्लमंद कहलाओगे।(32)

18:10

अल्लाह ताअला की पनाह एक मज़बूत क़िले की तरह है जहाँ नेक लोग हिफ़ाज़त से हैं।(10)

21:3

अल्लाह ताअला को नेक काम और ईमानदारी क़ुर्बानी से ज़्यादा पसंद है।(3)

4:23

अपनी सोच पर क़ाबू रखो; क्यूँकि तुम्हारी ज़िन्दगी तुम्हारी सोच से निखरती है।(23)