ख़ुदा की बातों को कोई बदलने वाला नहीं है (क़ुरान : अल-अनआम 6:34; अल-माइदा 5:46-48)

وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِنْ قَبْلِكَ فَصَبَرُوا عَلَىٰ مَا كُذِّبُوا وَأُوذُوا حَتَّىٰ أَتَاهُمْ نَصْرُنَا ۚ وَلَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِ اللَّهِ ۚ وَلَقَدْ جَاءَكَ مِنْ نَبَإِ الْمُرْسَلِينَ

وَقَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِمْ بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ ۖ وَآتَيْنَاهُ الْإِنْجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِلْمُتَّقِينَ

وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الْإِنْجِيلِ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ فِيهِ ۚ وَمَنْ لَمْ يَحْكُمْ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ

وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ ۖ فَاحْكُمْ بَيْنَهُمْ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ عَمَّا جَاءَكَ مِنَ الْحَقِّ ۚ لِكُلٍّ جَعَلْنَا مِنْكُمْ شِرْعَةً وَمِنْهَاجًا ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِنْ لِيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُمْ ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

ख़ुदा की बातों को कोई बदलने वाला नहीं है

क़ुरान : अल-अनआम 6:34; अल-माइदा 5:46-48

और अलबत्ता रसूल झुठलाए गए आप से पहले, पस उन्होंने सब्र किया उस पर जो वह झुठलाए गए और सताए गए यहाँ तक कि उन पर हमारी मदद आ गयी, और [कोई] बदलने वाला नहीं अल्लाह की बातों को, और अलबत्ता आप के पास रसूलों की कुछ ख़बरें पहुंच चुकी हैं।(34)

अल-माइदा 5:46-48

और हम ने उन्हीं पैग़म्बरों के क़दम ब क़दम मरियम के बेटे ईसा को चलाया और वह इस किताब तौरैत की भी तस्दीक़ करते थे जो उनके सामने [पहले से] मौजूद थी और हमने उनको इन्जील [भी] अता की जिसमें [लोगों के लिए हर तरह की] हिदायत थी और नूर [(ईमान)] और वह इस किताब तौरेत की जो वक़्ते नुज़ूले इंजील [पहले से] मौजूद थी तस्दीक़ करने वाली और परहेज़गारों की हिदायत व नसीहत थी।(46) और इंजील वालों [(नसारा)] को जो कुछ ख़ुदा ने [उसमें] नाज़िल किया है उसके मुताबिक़ हुक्म करना चाहिए और जो शख़्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई [किताब के मुआफ़िक] हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं।(47) और [ऐ रसूल] हमने तुम पर भी बरहक़ किताब नाज़िल की जो किताब [उसके पहले से] उसके वक़्त में मौजूद है उसकी तस्दीक़ करती है और उसकी निगहबान [भी] है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाज़िल किया है उसी के मुताबिक़ तुम भी हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख़्वाहिशे नफ़्सयानी की पैरवी न करो और हमने तुम में हर एक के वास्ते [हस्बे मसलेहते वक़्त] एक एक शरीयत और ख़ास तरीक़े पर मुक़र्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सब के सब को एक ही [शरीयत की] उम्मत बना देता मगर [मुख़्तलिफ़ शरीयतों से] ख़ुदा का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इम्तिहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और [यक़ीन जानो कि] तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है।(48)